Shakambhari Mata Chalisa
मां शाकंभरी देवी को माता जगदंबा का सौम्य रूप माना जाता है। शाकंभरी देवी को बहुत से स्थानों पर चार भुज और कई स्थानों पर आठ भुजाओं से भी दर्शाया गया है। हिन्दू धर्म के अनुसार माना जाता है कि शाकंभरी देवी के मंदिर माता सती का शीश गिरा था जो 51 सिद्ध पीठ में से एक है।
शाकंभरी देवी का मंदिर जहां माता सती का शीश गिरा था यह मंदिर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले में है।
Shakambhari Mata Chalisa को माता दुर्गा का अवतार भी माना जाता है। सहारनपुर में माता शाकंभरी देवी का मेला भी लगता है जो कि होली पर आयोजित किया जाता है इन दिनों माता शाकंभरी देवी की पूजा सभी व्यक्ति सच्चे मन से करते है और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है।
दोहा
दाहिने भीमा ब्रामरी अपनी छवि दिखाए।
बाईं ओर सतची नेत्रों को चैन दीवलए।
भूर देव महारानी के सेवक पहरेदार।
मां शकुंभारी देवी की जाग मई जे जे कार।।
चौपाई
जे जे श्री शकुंभारी माता। हर कोई तुमको सिष नवता।।
गणपति सदा पास मई रहते। विघन ओर बढ़ा हर लेते।।
हनुमान पास बलसाली। अगया टुंरी कभी ना ताली।।
मुनि वियास ने कही कहानी। देवी भागवत कथा बखनी।।
छवि आपकी बड़ी निराली। बढ़ा अपने पर ले डाली।।
अखियो मई आ जाता पानी। एसी किरपा करी भवानी।।
रुरू डेतिए ने धीयां लगाया। वार मई सुंदर पुत्रा था पाया।।
दुर्गम नाम पड़ा था उसका। अच्छा कर्म नहीं था जिसका।।
बचपन से था वो अभिमानी। करता रहता था मनमानी।।
योवां की जब पाई अवस्था। सारी तोड़ी धर्म वेवस्था।।
सोचा एक दिन वेद छुपा लूं। हर ब्रममद को दास बना लूं।।
देवी-देवता घबरागे। मेरी सरण मई ही आएगे।।
विष्णु शिव को छोड़ा उसने। ब्रह्माजी को धीयया उसने।।
भोजन छोड़ा फल ना खाया। वायु पीकेर आनंद पाया।।
जब ब्रहाम्मा का दर्शन पाया। संत भाव हो वचन सुनाया।।
चारो वेद भक्ति मई चाहू। महिमा मई जिनकी फेलौ।।
ब्ड ब्रहाम्मा वार दे डाला। चारों वेद को उसने संभाला।।
पाई उसने अमर निसनी। हुआ प्रसन्न पाकर अभिमानी।।
जैसे ही वार पाकर आया। अपना असली रूप दिखाया।।
धर्म धूवजा को लगा मिटाने। अपनी शक्ति लगा बड़ाने।।
बिना वेद ऋषि मुनि थे डोले। पृथ्वी खाने लगी हिचकोले।।
अंबार ने बरसाए शोले। सब त्राहि-त्राहि थे बोले।।
सागर नदी का सूखा पानी। कला दल-दल कहे कहानी।।
पत्ते बी झड़कर गिरते थे। पासु ओर पाक्सी मरते थे।।
सूरज पतन जलती जाए। पीने का जल कोई ना पाए।।
चंदा ने सीतलता छोड़ी। समाए ने भी मर्यादा तोड़ी।।
सभी डिसाए थे मतियाली। बिखर गई पूज की तली।।
बिना वेद सब ब्रहाम्मद रोए। दुर्बल निर्धन दुख मई खोए।।
बिना ग्रंथ के कैसे पूजन। तड़प रहा था सबका ही मान।।
दुखी देवता धीयां लगाया। विनती सुन प्रगती महामाया।।
मा ने अधभूत दर्श दिखाया। सब नेत्रों से जल बरसाया।।
हर अंग से झरना बहाया। सतची सूभ नाम धराया।।
एक हाथ मई अन्न भरा था। फल भी दूजे हाथ धारा था।।
तीसरे हाथ मई तीर धार लिया। चोथे हाथ मई धनुष कर लिया।।
दुर्गम रक्चाश को फिर मारा। इस भूमि का भार उतरा।।
नदियों को कर दिया समंदर। लगे फूल-फल बाग के अंदर।।
हारे-भरे खेत लहराई। वेद ससत्रा सारे लोटाय।।
मंदिरो मई गूंजी सांख वाडी। हर्षित हुए मुनि जान पड़ी।।
अन्न-धन साक को देने वाली। सकंभारी देवी बलसाली।।
नो दिन खड़ी रही महारानी। सहारनपुर जंगल मई निसनी।।
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शाकंभरी देवी चालीसा पढ़ने के लाभ
शाकंभरी देवी की चालीसा का पाठ करने से हमारी हर मनोकामना पूर्ण होती है इनकी आराधना करने से हमे पापों से मुक्ति मिलती हैं। जो भी व्यक्ति इस चालीसा का पाठ सच्चे मन से करता है उसको जीवन में कभी असफलता नही मिलती।
यदि आप भी मां शाकंभरी देवी का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो आप भी मां की आराधना करे और उनकी चालीसा का पाठ करें।
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