मां बगलामुखी चालीसा देवी बगलामुखी की महिमा और शक्ति का गुणगान करने वाला एक पवित्र स्तोत्र है। मां बगलामुखी दस महाविद्याओं में से एक हैं और इन्हें न्याय और शत्रु विजय की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। यह चालीसा देवी के दिव्य रूप, उनकी अलौकिक शक्तियों और भक्तों को प्रदान किए जाने वाले आशीर्वादों का वर्णन करती है।
चालीसा का पाठ विशेष रूप से संकटों से मुक्ति पाने, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने और मानसिक शांति के लिए किया जाता है। मां बगलामुखी अपने भक्तों को साहस, आत्मविश्वास और नकारात्मकता से बचाव का आशीर्वाद देती हैं।
मां बगलामुखी चालीसा का नियमित पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है और उसे आध्यात्मिक बल मिलता है। यह चालीसा मां के प्रति भक्तों की श्रद्धा को प्रकट करने और उनके आशीर्वादों को पाने का सशक्त माध्यम है।
मां बगलामुखी चालीसा
।। दोहा ।।
नमो महाविधा बरदा , बगलामुखी दयाल |
स्तम्भन क्षण में करे , सुमरित अरिकुल काल ||
।। चौपाई ।।
नमो नमो पीताम्बरा भवानी , बगलामुखी नमो कल्यानी | १|
भक्त वत्सला शत्रु नशानी , नमो महाविधा वरदानी |२ |
अमृत सागर बीच तुम्हारा, रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा |३ |
स्वर्ण सिंहासन पर आसीना, पीताम्बर अति दिव्य नवीना |४ |
स्वर्णभूषण सुन्दर धारे, सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे |५ |
तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, धारे मुद्गर पाश कराला |६ |
भैरव करे सदा सेवकाई, सिद्ध काम सब विघ्न नसाई |७ |
तुम हताश का निपट सहारा, करे अकिंचन अरिकल धारा |८ |
तुम काली तारा भुवनेशी, त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी |९ |
छिन्नभाल धूमा मातंगी, गायत्री तुम बगला रंगी |१० |
सकल शक्तियाँ तुम में साजें, ह्रीं बीज के बीज बिराजे |११ |
दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, मारण वशीकरण सम्मोहन |१२ |
दुष्टोच्चाटन कारक माता, अरि जिव्हा कीलक सघाता |१३ |
साधक के विपति की त्राता, नमो महामाया प्रख्याता |१४ |
मुद्गर शिला लिये अति भारी, प्रेतासन पर किये सवारी |१५ |
तीन लोक दस दिशा भवानी, बिचरहु तुम हित कल्यानी |१६ |
अरि अरिष्ट सोचे जो जन को, बुध्दि नाशकर कीलक तन को |१७ |
हाथ पांव बाँधहु तुम ताके, हनहु जीभ बिच मुद्गर बाके |१८ |
चोरो का जब संकट आवे, रण में रिपुओं से घिर जावे |१९ |
अनल अनिल बिप्लव घहरावे, वाद विवाद न निर्णय पावे |२० |
मूठ आदि अभिचारण संकट, राजभीति आपत्ति सन्निकट |२१ |
ध्यान करत सब कष्ट नसावे, भूत प्रेत न बाधा आवे |२२ |
सुमरित राजव्दार बंध जावे, सभा बीच स्तम्भवन छावे |२३ |
नाग सर्प ब्रर्चिश्रकादि भयंकर, खल विहंग भागहिं सब सत्वर |२४ |
सर्व रोग की नाशन हारी, अरिकुल मूलच्चाटन कारी |२५ |
स्त्री पुरुष राज सम्मोहक, नमो नमो पीताम्बर सोहक |२६ |
तुमको सदा कुबेर मनावे, श्री समृद्धि सुयश नित गावें |२७ |
शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता, दुःख दारिद्र विनाशक माता |२८ |
यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता, शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता | २९ |
पीताम्बरा नमो कल्यानी, नमो माता बगला महारानी |३०|
जो तुमको सुमरै चितलाई, योग क्षेम से करो सहाई |३१ |
आपत्ति जन की तुरत निवारो, आधि व्याधि संकट सब टारो |३२ |
पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, अर्थ न आखर करहूँ निहोरी |३३ |
मैं कुपुत्र अति निवल उपाया, हाथ जोड़ शरणागत आया |३४ |
जग में केवल तुम्हीं सहारा, सारे संकट करहुँ निवारा |३५ |
नमो महादेवी हे माता, पीताम्बरा नमो सुखदाता |३६ |
सोम्य रूप धर बनती माता, सुख सम्पत्ति सुयश की दाता |३७ |
रोद्र रूप धर शत्रु संहारो, अरि जिव्हा में मुद्गर मारो |३८|
नमो महाविधा आगारा, आदि शक्ति सुन्दरी आपारा |३९ |
अरि भंजक विपत्ति की त्राता, दया करो पीताम्बरी माता | ४० |
।। दोहा ।।
रिद्धि सिद्धि दाता तुम्हीं, अरि समूल कुल काल |
मेरी सब बाधा हरो, माँ बगले तत्काल ||
।। इति बगलामुखी चालीसा ।।
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