December 4, 2024

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संकटमोच नहनुमान अष्टक Santak Mochan Hanuman Ashtak

संकट मोचन हनुमान अष्टक एक प्रसिद्ध चालीसा है जो भगवान हनुमान की स्तुति में लिखा गया है। इसे तुलसीदास जी ने रचा था। इस चालीसा में हनुमान जी की महिमा और उनके द्वारा भक्तों के संकटों को दूर करने की शक्ति का वर्णन किया गया है।
संकट मोचन हनुमान अष्टक के आठ श्लोकों में हनुमान जी की वीरता, शक्ति, और भक्तों के प्रति उनकी करुणा का वर्णन मिलता है। यह भजन भक्तों के बीच बहुत लोकप्रिय है और इसे गाने से मन को शांति और शक्ति मिलती है।

॥ श्रीहनूमते नमः॥

बाल समय रवि भक्षी लियो तब,
तीनहुं लोक भयो अंधियारों ।
ताहि सों त्रास भयो जग को,
यह संकट काहु सों जात न टारो ।
देवन आनि करी बिनती तब,
छाड़ी दियो रवि कष्ट निवारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 
बालि की त्रास कपीस बसैं गिरि,
जात महाप्रभु पंथ निहारो ।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,
 चाहिए कौन बिचार बिचारो ।
को नहीं जानत है जग में कपि,
 संकटमोचन नाम तिहारो ॥
कैद्विज रूप लिवाय महाप्रभु,
 सो तुम दास के सोक निवारो ॥ 
अंगद के संग लेन गए सिय,
 खोज कपीस यह बैन उचारो ।
जीवत ना बचिहौ हम सो जु,
 बिना सुधि लाये इहाँ पगु धारो ।
हेरी थके तट सिन्धु सबै तब,
लाए सिया-सुधि प्राण उबारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
 संकटमोचन नाम तिहारो ॥
रावण त्रास दई सिय को सब,
 राक्षसी सों कही सोक निवारो ।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु,
 जाए महा रजनीचर मारो ।
चाहत सीय असोक सों आगि सु,
 दै प्रभुमुद्रिका सोक निवारो ॥ 
को नहीं जानत है जग में कपि,
 संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 
बान लग्यो उर लछिमन के तब,
 प्राण तजे सुत रावन मारो ।
लै गृह बैद्य सुषेन समेत,
 तबै गिरि द्रोण सु बीर उपारो ।
आनि सजीवन हाथ दई तब,
 लछिमन के तुम प्रान उबारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
 संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 
रावन युद्ध अजान कियो तब,
नाग कि फाँस सबै सिर डारो ।
श्रीरघुनाथ समेत सबै दल,
 मोह भयो यह संकट भारो I
आनि खगेस तबै हनुमान जु,
बंधन काटि सुत्रास निवारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
 संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 
बंधु समेत जबै अहिरावन,
लै रघुनाथ पताल सिधारो ।
देबिहिं पूजि भलि विधि सों बलि,
देउ सबै मिलि मन्त्र विचारो ।
जाय सहाय भयो तब ही,
 अहिरावन सैन्य समेत संहारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
 संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 
काज किये बड़ देवन के तुम,
 बीर महाप्रभु देखि बिचारो ।
कौन सो संकट मोर गरीब को,
 जो तुमसे नहिं जात है टारो ।
बेगि हरो हनुमान महाप्रभु,
जो कछु संकट होय हमारो ॥
को नहीं जानत है जग में कपि,
 संकटमोचन नाम तिहारो ॥ 
दोहा:
लाल देह लाली लसे,
  अरु धरि लाल लंगूर ।
वज्र देह दानव दलन,
  जय जय जय कपि सूर ॥

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