Jagadguru Rambhadracharya Ji – जीवन परिचय, बालकल्य, आश्रम

जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का जीवन परिचय

Jagadguru Rambhadracharya Ji का जीवन अत्यंत प्रेरणादायक है जो लोगों को कठिन से कठिन समय में भी जीवन जीने की प्रेरणा देता है और उनका जीवन आध्यात्मिकता से परिपूर्ण है। वे आज के युग के एक प्रसिद्ध संत, विद्वान, संस्कृत के प्रकांड पंडित, लेखक, वक्ता और धार्मिक नेता हैं। जगद्गुरु रामभद्राचार्य को 22 भाषाओं का ज्ञान है इनकी कृपा मात्र से लोगों की परेशानिया दूर होती हैं। 

यह जीवन-कथा एक ऐसे दिव्य पुरुष की कहानी है, जिसने बचपन में दृष्टि खो दी, परंतु पूरे जीवन में ज्ञान, भक्ति और सेवा की रोशनी से संसार को आलोकित कर दिया। इनकी कहानी आत्मबल, भक्ति और तप की अद्भुत मिसाल मानी जाती है जिससे भक्तों को सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। 

जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का बालकल्य और जन्म 

जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का जन्म 14 फरवरी 1950 मकर संक्रांति के दिन, जयसिंहपु जिला सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। बालकल्य में ही एक दुर्घटना में जब वे मात्र दो माह के थे तब उनकी आंखों की रोशनी चली गई थी। उनके माता पिता ने कई प्रयास किए बहुत जगह उनकी आंखों का इलाज कराया परन्तु कई प्रयासों के बावजूद भी उनकी कोशिश असफल रही और रामभद्राचार्य जी की आंखों की रोशनी कभी वापिस नहीं आई।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी ने बहुत कम समय में आंखों की रोशनी न होते हुए भी भगवद्गीता का पाठ कर लिया था जब वे केबल 7 वर्ष की आयु के थे और फिर मात्र 9 वर्ष की आयु में ही उन्होंने रामचरितमानस कंठस्थ का पाठ भी पूरा कर लिया। उन्होंने श्रवण और स्मरण की शक्ति से वेद, शास्त्र, पुराण, उपनिषद, गीता, रामायण आदि कंठस्थ कर लिए।

जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी का आश्रम 

Jagadguru Rambhadracharya Maharaj Ji का आश्रम जो “श्री तुलसी पीठ सेवा न्यास” के नाम से प्रसिद्ध है, यह वही स्थान है जहां प्रभु श्री राम ने अपने भाई भरत को अपनी चरण पादुकाएं दी थी, यह आश्रम मध्य प्रदेश के सतना जिले में स्थित है। यह आश्रम चित्रकूट के जानकी कुंड क्षेत्र में है और एक प्रमुख धार्मिक, सामाजिक एवं शैक्षिक केंद्र के रूप में कार्य करता है। 1987 में स्वामी रामभद्राचार्य जी ने इसकी स्थापना की थी। रामभद्राचार्य जी महाराज ने इस आश्रम को विशेष रूप से दिव्यांग बच्चों के लिए बनाया है।

आश्रम की विशेषताएं

सीताराम मंदिर : यह मंदिर आश्रम का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर 3 शिखर वाला है जहां पर गर्भ ग्रह में माता सीता, भगवान श्री राम और लक्ष्मण जी की मूर्ति स्थित है। गर्भ ग्रह की बाई ओर एक हनुमान जी का मंदिर स्थित है और गर्भ ग्रह की दाई ओर ऋषि वाल्मीकि, जगद्गुरु आद्य रामानंदाचार्य, और गोस्वामी तुलसीदास की मूर्तियाँ हैं। 

शिक्षा एवं विद्या केंद्र : दिव्यांग छात्रों के लिए इस आश्रम में विशेष रूप से एक विद्यालय का निर्माण किया गया है जिसका नाम जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय रखा गया है। इस विद्यालय में सभी विकलांग बच्चों को शिक्षा दी जाती है और वेद, पुराण, गीता, रामायण, शास्त्र आदि का ज्ञान दिया जाता है। इस विद्यालय में P.H.D, M.A, B.Ed जैसी डिग्री भी कराई जाती है।

सेवा कार्य : इस आश्रम में दिव्यांगों के लिए मुफ़्त शिक्षा, भोजन, रहने के लिए आवास, व चिकित्सा उपलब्ध है। जो व्यक्ति गरीब है उनके लिए भी भोजन, पहनने के लिए वस्त्र, मुफ़्त चिकित्सा व और भी सहायक चीजें उपलब्ध हैं। जो भी व्यक्ति नेत्र हीन है उसके लिए अलग से ब्रेन लिपि में सभी धार्मिक ग्रन्थ उपलब्ध हैं। इस आश्रम में सभी दिव्यांग बच्चों का पूर्ण रूप से ध्यान रखा जाता है।

वार्षिक आयोजन : महाशिवरात्रि, हनुमान जयंती, रामनवमी, दीपावली, कृष्ण जन्माष्टमी, और भी बहुत से त्योहारों का आयोजन किया जाता है और भव्य रूप से मनाया जाता है। जब भी राम कथा का आयोजन होता हैं तब देश विदेश से बहुत से श्रद्धालु राम कथा में भाग लेते हैं। रामभद्राचार्य जी महाराज खुद एक महान साहित्यकार और वक्ता है।

रामभद्राचार्य जी महाराज के गुरु अथवा प्रेरणा

रामभद्राचार्य जी महाराज के आध्यात्मिक गुरु पारिजात द्वैताचार्य स्वामी रामप्रिय दास जी महाराज थे। रामप्रिय महाराज ने स्वामी रामभद्राचार्य जी महाराज को तब दीक्षा दी थी जब वह युवा अवस्था में थे। यहीं से रामभद्राचार्य जी का जीवन संन्यास, शास्त्रज्ञान और भक्ति की ओर पूर्ण रूप से समर्पित हो गया था। वेद, उपनिषद, दर्शन, व्याकरण, काव्य और न्याय शास्त्रों के महान आचार्यों को वे अपनी प्रेरणा मानते हैं।

क्या रामभद्राचार्य पूरी तरह से अंधे हैं?

हाँ, स्वामी रामभद्राचार्य पूरी तरह से अंधे हैं।
उनकी आँखों की रोशनी बचपन में ही, लगभग दो वर्ष की आयु में, एक दुर्घटना के कारण चली गई थी। इसके बाद से वे जीवन भर नेत्रहीन रहे हैं। लेकिन उनकी प्रतिभा, स्मरण शक्ति और विद्वत्ता असाधारण है।

रामभद्राचार्य जी की शादी हो चुकी है?

नहीं, स्वामी रामभद्राचार्य जी ने कभी शादी नहीं की है।
वे आजन्म ब्रह्मचारी हैं और सन्यासी जीवन का पालन कर रहे हैं। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में ही वैराग्य अपना लिया था और अपने जीवन को धर्म, वेद, शिक्षा, और समाजसेवा के लिए समर्पित कर दिया।

Rambhadracharya books

स्वामी रामभद्राचार्य जी एक महान विद्वान, भाष्यकार, कवि और धर्मगुरु हैं। उन्होंने 100 से अधिक ग्रंथों की रचना की है, जिनमें संस्कृत, हिंदी, अवधी और अन्य भाषाओं में काव्य, टीका (व्याख्या), शोध और धार्मिक ग्रंथ शामिल हैं।
यहाँ उनके कुछ प्रमुख ग्रंथों और पुस्तकों की सूची दी गई है:

🔹 रामचरितमानस पर टीका (हिंदी)
श्रीरामचरितमानस का प्रसादात्मक भाष्य (कई खंडों में)
यह उनका सबसे प्रसिद्ध कार्य है
रामचरितमानस पर दृष्टिहीन होकर भी की गई पहली टीका मानी जाती है

🔹 संस्कृत काव्य और ग्रंथ
श्रीभार्गवराघवीयं – संस्कृत महाकाव्य (राम और परशुराम संवाद पर आधारित)
श्रीराघवगीता – भगवद्गीता के समान 701 श्लोकों का एक दर्शनग्रंथ
गीतारामायणम् – रामकथा पर आधारित गीता के श्लोकों की शैली में रचना
श्रीराघवाभ्युदयम् – संस्कृत में रामकथा पर आधारित महाकाव्य

🔹 हिंदी काव्य और कृति
भावार्थबोधिनी – हिंदी में गीता का सरल भावार्थ
विकलांग चिंतन – दिव्यांगता और समाज पर विचार
भावार्कबोधिनी – सूरदास के पदों पर आधारित टीका

🔹 अन्य ग्रंथ व रचनाएँ
तुलसीपीठ संप्रदाय ग्रंथमाला में कई धार्मिक और दार्शनिक रचनाएँ
रामस्मृति, श्रीमद्भागवत टीका, योगवासिष्ठ पर भाष्य आदि

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