Baglamukhi Yantra
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बगलामुखी यंत्र एक अत्यंत शक्तिशाली यंत्र है, जो देवी बगलामुखी की उपासना के लिए प्रयोग में लाया जाता है। यह यंत्र विशेष रूप से शत्रु नाश, वाक् सिद्धि (वाणी पर नियंत्रण), विरोधियों को शांत करने, और विचार शक्ति को तेज करने के लिए प्रसिद्ध है। इस यंत्र का उपयोग करने से शत्रु शांत होते हैं और उनकी नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव खत्म होता है। कोर्ट केस, झगड़े या कानूनी विवादों में यह यंत्र विशेष रूप से लाभकारी माना जाता है।
बगलामुखी यंत्र वाणी पर नियंत्रण प्रदान करता है जिससे व्यक्ति प्रभावशाली संवाद कर सकता है और दूसरों पर प्रभाव डालता है। वाद-विवाद, बहस या किसी प्रतियोगिता में जीत दिलाने में यह यंत्र सहायता करता है। व्यापार या राजनीति में प्रतिद्वंद्वियों को शांत करने और सफलता प्राप्त करने के लिए इसे उपयोग किया जाता है। यह यंत्र नकारात्मक ऊर्जा, बुरी नजर और तांत्रिक प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करता है।
बगलामुखी देवी कौन है
बगलामुखी देवी हिन्दू धर्म की दस महाविद्याओं में से एक हैं। उन्हें शक्ति की देवी माना जाता है, जो शत्रुओं को स्तंभित (निष्क्रिय) करने की क्षमता रखती हैं। “बगला” का अर्थ है रोक देना या नियंत्रण करना, और “मुखी” का अर्थ है मुख या चेहरा। इस प्रकार, बगलामुखी का अर्थ होता है: जो शत्रु की शक्ति, वाणी और बुद्धि को रोक देती हैं। उन्हें पीताम्बरा देवी भी कहा जाता है, क्योंकि उनका रंग पीला होता है और वे पीले वस्त्र धारण करती हैं।
बगलामुखी देवी का वाहन सिंह होता है। उनके दो प्रमुख हाथ होते हैं — एक में वे शत्रु की जीभ पकड़ती हैं और दूसरे में गदा होती है। वे वाणी और तर्क शक्ति को नियंत्रित करती हैं, इसलिए वाद-विवाद, कोर्ट केस या शत्रु संकट में इनकी साधना की जाती है। शत्रु बाधा, मुकदमेबाजी, तंत्र बाधा, वाक् विजय और मानसिक शांति हेतु बगलामुखी देवी की पूजा की जाती है।
बगलामुखी यंत्र को कैसे सिद्ध करें?
बगलामुखी यंत्र को सिद्ध (प्राण प्रतिष्ठित) करने से वह यंत्र जाग्रत होता है और साधक को शत्रु बाधा, वाक् विजय, कोर्ट केस, और अन्य मानसिक/शारीरिक संकटों से रक्षा करता है। सबसे पहले सामग्री ले जैसे कि शुद्ध बगलामुखी यंत्र, पीला वस्त्र, हल्दी की माला (108 दाने वाली), पीला आसन, गंगाजल या शुद्ध जल, केसर, चंदन, हल्दी, पीले पुष्प, दीपक, धूप, प्रसाद (बेसन के लड्डू या बूंदी)।
बगलामुखी यंत्र को सिद्ध करने की विधि– किसी शुभ मुहूर्त (विशेषकर अमावस्या, नवरात्रि, या मंगलवार को) सुबह स्नान कर पीले वस्त्र पहनें। पूजन स्थान को शुद्ध करें और पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके पीले आसन पर बैठें। हाथ में जल लेकर संकल्प लें: “ॐ ऐं ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा।” इस मंत्र के साथ यंत्र सिद्धि हेतु संकल्प लें।
यंत्र को पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, शक्कर) और फिर गंगाजल से शुद्ध करें। फिर यंत्र को पीले वस्त्र पर स्थापित करें। अब यंत्र की पूजा विधि शुरू करे यंत्र को चंदन, केसर, हल्दी से तिलक करें। पीले फूल अर्पित करें। दीपक और धूप जलाएं। अब मंत्र का जाप करें बगलामुखी बीज मंत्र का 11, 21, या 108 माला (गणना के अनुसार) जाप करें: “ॐ ह्लीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिव्हां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ॐ स्वाहा।”
बगलामुखी यंत्र को किस दिशा में रखे
बगलामुखी यंत्र को स्थापित करने और उसकी पूजा करने के लिए दिशा, स्थान, और विधि का विशेष महत्व होता है। यह यंत्र देवी बगलामुखी की शक्ति को आकर्षित करता है और शत्रु नाश, वाणी पर नियंत्रण, और विजय प्राप्ति के लिए प्रयोग किया जाता है। बगलामुखी देवी को पीला रंग अत्यंत प्रिय है। यंत्र को लकड़ी या पीतल की चौकी पर रखें। यंत्र की स्थापना के समय “बगलामुखी बीज मंत्र” या “ॐ ह्लीं बगलामुख्यै नमः” मंत्र का जाप करें।
बगलामुखी यंत्र को दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूर्व दिशा में स्थापित करें। इसका अर्थ है कि यंत्र पूर्व दिशा की ओर मुख करके रखा जाए, और उपासक पश्चिम की ओर मुख करके बैठे। पूजा कक्ष या शांत स्थान सबसे अच्छा होता हैं। यदि आप विशेष रूप से शत्रु नाश या वाक् सिद्धि के लिए यंत्र का प्रयोग कर रहे हैं, तो किसी योग्य गुरु से दीक्षा लेकर ही उसका प्रयोग करें। बगलामुखी यंत्र की पूजा विशेष रूप से मंगलवार और गुरुवार को शुभ मानी जाती है।
बगलामुखी यंत्र प्राण प्रतिष्ठा विधि
बगलामुखी यंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा विधि एक अत्यंत महत्वपूर्ण और शक्तिशाली प्रक्रिया है, जिससे यंत्र में देवी बगलामुखी की दिव्य ऊर्जा को आमंत्रित किया जाता है। यदि आप इस यंत्र का पूर्ण फल चाहते हैं तो इसकी विधिपूर्वक प्राण-प्रतिष्ठा अनिवार्य है। आवश्यक सामग्री – बगलामुखी यंत्र (शुद्ध व स्वर्ण/ताम्र/पंचधातु पर अंकित), पीला वस्त्र, लकड़ी की चौकी, गंगाजल / शुद्ध जल, कुमकुम, हल्दी, चंदन, बगलामुखी मंत्र जाप माला (हल्दी माला श्रेष्ठ), पीले फूल।
यंत्र को पूर्वमुखी स्थापित करें (यंत्र का मुख पूर्व की ओर हो)। साधक का मुख पश्चिम की ओर होना चाहिए। स्वयं स्नान करके पीले वस्त्र धारण करें। स्थान को गंगाजल/गोमूत्र से शुद्ध करें। चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर यंत्र रखें। यंत्र को पंचामृत से स्नान कराएं। फिर गंगाजल या शुद्ध जल से धोकर साफ करें। यंत्र को पीले वस्त्र पर स्थापित करें। दीपक जलाएं। “ॐ ह्लीं बगलामुख्यै नमः” मंत्र से यंत्र पर कुमकुम, हल्दी, अक्षत, और फूल अर्पित करें।
दोनों हाथ जोड़कर निम्न मंत्र से प्राण प्रतिष्ठा करें: “ॐ ऐं ह्लीं श्रीं बगलामुख्यै यंत्राय प्राणाः प्रतिष्ठापयामि नमः” यंत्र में दिव्य ऊर्जा के आवाहन हेतु “आवाहन मंत्र” पढ़ें: “ॐ ह्लीं बगलामुख्यै नमः। आवाहयामि संस्थापयामि।” कम से कम 108 बार “ॐ ह्लीं बगलामुख्यै नमः” का जप करें। यदि संभव हो तो 11 माला जप करें। यदि संभव हो तो किसी अनुभवी ब्राह्मण या गुरु की सहायता लें। प्राण-प्रतिष्ठा एक बार हो जाने के बाद रोज कम से कम एक माला (108 बार) मंत्र जप करें।
मां बगलामुखी देवी के 108 नाम
ॐ बगलायै नमः, ॐ बगला-मुख्यै नमः, ॐ स्तम्भिन्यै नमः, ॐ मोहिन्यै नमः, ॐ मारिण्यै नमः, ॐ उच्छोषिण्यै नमः, ॐ जृम्भिण्यै नमः, ॐ सर्वदुष्ट-ग्रह-नाशिन्यै नमः, ॐ सर्वारिष्ट-निवारिण्यै नमः, ॐ सर्व-शत्रु-नाशिन्यै नमः, ॐ वाग्वादिनि-स्तम्भिन्यै नमः, ॐ चित्त-स्तम्भिन्यै नमः, ॐ बौद्धिक-स्तम्भिन्यै नमः, ॐ रात्रि-स्वरूपिण्यै नमः, ॐ दुष्ट-प्राण-नाशिन्यै नमः, ॐ पीतवर्णायै नमः, ॐ पीताम्बरायै नमः, ॐ पीतगन्धानुलेपनायै नमः, ॐ पीतपुष्पप्रियांबिकायै नमः, ॐ पीतकिञ्चिकधारिण्यै नमः, ॐ पीत-रत्नविभूषितायै नमः, ॐ बगलामुखि-ध्याननिष्ठायै नमः, ॐ ब्रह्मास्त्रस्वरूपिण्यै नमः, ॐ ब्रह्मविद्यायै नमः, ॐ ब्रह्माण्यै नमः, ॐ ब्रह्मशक्त्यै नमः, ॐ पराशक्त्यै नमः, ॐ सर्वशक्तिमते नमः, ॐ सृष्टिस्थित्यन्तकारिण्यै नमः, ॐ कालरात्र्यै नमः, ॐ महाशक्त्यै नमः, ॐ कपालिनी-धारिण्यै नमः, ॐ योगिन्यै नमः, ॐ तारा-स्वरूपिण्यै नमः, ॐ महाविद्यायै नमः, ॐ कामरूपिण्यै नमः, ॐ यंत्र-मंत्र-तन्त्र-स्वरूपिण्यै नमः, ॐ दक्षयज्ञविनाशिन्यै नमः, ॐ शत्रु-बुद्धि-प्रमोहिन्यै नमः, ॐ मोहिनी-मायायै नमः, ॐ अनन्तरूपिण्यै नमः, ॐ दशविद्या-समाराध्यायै नमः, ॐ दशमहाविद्यायै नमः, ॐ शुद्ध-सत्त्वायै नमः, ॐ निराकारायै नमः, ॐ सर्वज्ञानप्रदायिन्यै नमः, ॐ महामारिण्यै नमः, ॐ चण्डमुण्डविनाशिन्यै नमः, ॐ रक्तबीजनाशिन्यै नमः, ॐ महिषासुरमर्दिन्यै नमः ॐ शुम्भ-निशुम्भ-नाशिन्यै नमः, ॐ चामुण्डायै नमः, ॐ भीषणायै नमः, ॐ खड्गिनी-धारिण्यै नमः, ॐ वज्र-शक्तिधारिण्यै नमः, ॐ त्रिशूलिन्यै नमः, ॐ पाशधारिण्यै नमः, ॐ अंकुशिन्यै नमः, ॐ घण्टायै नमः, ॐ डमरु-धारिण्यै नमः, ॐ शंखचक्र-गदाधारिण्यै नमः, ॐ सर्वायुध-धारिण्यै नमः, ॐ अष्टभुजायै नमः, ॐ दशभुजायै नमः, ॐ चतुर्भुजायै नमः, ॐ द्विभुजायै नमः, ॐ अनेकभुजायै नमः, ॐ नवरूपायै नमः, ॐ नवदुर्गायै नमः, ॐ नवशक्त्यै नमः, ॐ त्रैलोक्यमोहन्यै नमः, ॐ शिवायै नमः, ॐ शक्त्यै नमः, ॐ शिवाशक्तिस्वरूपिण्यै नमः, ॐ परमेश्वर्यै नमः, ॐ महासरस्वत्यै नमः, ॐ महामायायै नमः, ॐ योगमायायै नमः, ॐ योगिन्यै नमः, ॐ पिंगलायै नमः, ॐ चण्डिकायै नमः, ॐ ह्लादिन्यै नमः, ॐ ब्रह्मविद्यायै नमः, ॐ विष्णुमायायै नमः, ॐ क्षेमकरीण्यै नमः, ॐ आयुष्यदायिन्यै नमः, ॐ बुद्धिप्रदायिन्यै नमः, ॐ ज्ञानविज्ञानप्रदायिन्यै नमः, ॐ सौभाग्यदायिन्यै नमः, ॐ संहारिण्यै नमः, ॐ उग्रायै नमः, ॐ ज्वालामुख्यै नमः, ॐ ज्वालामालिन्यै नमः, ॐ कालिका-स्वरूपिण्यै नमः, ॐ रक्तदन्तायै नमः, ॐ रुद्रायै नमः, ॐ महादेव्यै नमः, ॐ जगदम्बायै नमः, ॐ जगदात्मिकायै नमः, ॐ दुर्गायै नमः, ॐ भद्रकालयै नमः, ॐ अन्नपूर्णायै नमः, ॐ कात्यायन्यै नमः, ॐ कामाख्यै नमः, ॐ त्रिपुरायै नमः, ॐ त्रिपुरभैरव्यै नमः, ॐ अष्टादशमहाविद्यायै नमः, ॐ ब्रह्ममूर्त्यै नमः
प्रत्येक नाम के साथ “ॐ” और “नमः” जोड़कर जप करें। इस स्तुति को मंगलवार या गुरुवार, पीले वस्त्र पहनकर, और पीले पुष्प अर्पित करते हुए करें।