परशुराम चालीसा भगवान परशुराम को समर्पित एक भक्ति पाठ है, जो उनके अद्भुत चरित्र, शौर्य और तपस्या का गुणगान करता है। भगवान परशुराम को विष्णु के छठे अवतार के रूप में पूजा जाता है, जो धर्म की स्थापना और अधर्म के नाश के लिए प्रकट हुए। परशुराम चालीसा में उनके जन्म, तप, पराक्रम और दुष्टों के विनाश की कथा का वर्णन मिलता है।
चालीसा का नियमित पाठ करने से भक्तों को आत्मबल, ज्ञान और जीवन में कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति प्राप्त होती है। परशुराम जयंती के दिन इसका पाठ विशेष रूप से शुभ माना जाता है। यह चालीसा भक्तों को अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। सरल और प्रभावशाली भाषा में लिखी गई यह चालीसा हर उम्र के लोगों के लिए प्रेरणादायक है और भगवान परशुराम की कृपा पाने का माध्यम है।
श्री परशुराम चालीसा
दोहा
श्री गुरु चरण सरोज छवि, निज मन मन्दिर धारि।
सुमरि गजानन शारदा, गहि आशिष त्रिपुरारि।।
बुद्धिहीन जन जानिये, अवगुणों का भण्डार।
बरणौं परशुराम सुयश, निज मति के अनुसार।।
चौपाई
जय प्रभु परशुराम सुख सागर, जय मुनीश गुण ज्ञान दिवाकर।
भृगुकुल मुकुट बिकट रणधीरा, क्षत्रिय तेज मुख संत शरीरा।
जमदग्नी सुत रेणुका जाया, तेज प्रताप सकल जग छाया।
मास बैसाख सित पच्छ उदारा, तृतीया पुनर्वसु मनुहारा।
प्रहर प्रथम निशा शीत न घामा, तिथि प्रदोष व्यापि सुखधामा।
तब ऋषि कुटीर रुदन शिशु कीन्हा, रेणुका कोखि जनम हरि लीन्हा।
निज घर उच्च ग्रह छः ठाढ़े, मिथुन राशि राहु सुख गाढ़े।
तेज-ज्ञान मिल नर तनु धारा, जमदग्नी घर ब्रह्म अवतारा।
धरा राम शिशु पावन नामा, नाम जपत लग लह विश्रामा।
भाल त्रिपुण्ड जटा सिर सुन्दर, कांधे मूंज जनेऊ मनहर।
मंजु मेखला कठि मृगछाला, रुद्र माला बर वक्ष विशाला।
पीत बसन सुन्दर तुन सोहें, कंध तुरीण धनुष मन मोहें।
वेद-पुराण-श्रुति-स्मृति ज्ञाता, क्रोध रूप तुम जग विख्याता।
दायें हाथ श्रीपरसु उठावा, वेद-संहिता बायें सुहावा।
विद्यावान गुण ज्ञान अपारा, शास्त्र-शस्त्र दोउ पर अधिकारा।
भुवन चारिदस अरु नवखंडा, चहुं दिशि सुयश प्रताप प्रचंडा।
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