Parasnath Bhagwan Stotra english

श्री पार्श्वनाथ चालीसा | Parasnath Chalisa Lyrics

श्री पारसनाथ चालीसा (Shri Parasnath Chalisa) जैन धर्म के सबसे श्रद्धेय और लोकप्रिय भक्ति पाठों में से एक है। यह चालीसा जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर, भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है, जिन्हें ‘पुरुषदाानीय’ और भक्तों का रक्षक माना जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान पार्श्वनाथ ने ‘कमठ’ द्वारा दिए गए घोर उपसर्गों (कष्टों) को अपनी क्षमा और समता भाव से जीता था। इसी कारण, श्री पारसनाथ चालीसा का पाठ संकट मोचन माना जाता है। भक्तों का अटूट विश्वास है कि इसका नियमित जाप करने से जीवन की बड़ी से बड़ी बाधाएं, भय और ग्रह दोष समाप्त हो जाते हैं।

दोहा 
 
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करूं प्रणाम।
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम।
 
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मंदिर सुखकार।
अहिच्छत्र और पार्श्व को, मन मंदिर में धार।|
 
 
 
।।चौपाई।।
 
पार्श्वनाथ जगत हितकारी, हो स्वामी तुम व्रत के धारी।
सुर नर असुर करें तुम सेवा, तुम ही सब देवन के देवा।
 
तुमसे करम शत्रु भी हारा, तुम कीना जग का निस्तारा।
अश्वसेन के राजदुलारे, वामा की आंखों के तारे।
 
काशीजी के स्वामी कहाए, सारी परजा मौज उड़ाए।
इक दिन सब मित्रों को लेके, सैर करन को वन में पहुंचे।
 
हाथी पर कसकर अम्बारी, इक जंगल में गई सवारी।
एक तपस्वी देख वहां पर, उससे बोले वचन सुनाकर।
 
तपसी! तुम क्यों पाप कमाते, इस लक्कड़ में जीव जलाते।
तपसी तभी कुदाल उठाया, उस लक्कड़ को चीर गिराया।
 
निकले नाग-नागनी कारे, मरने के थे निकट बिचारे।
रहम प्रभु के दिल में आया, तभी मंत्र नवकार सुनाया।
 
मरकर वो पाताल सिधाए, पद्मावती धरणेन्द्र कहाए।
तपसी मरकर देव कहाया, नाम कमठ ग्रंथों में गाया।
 
एक समय श्री पारस स्वामी, राज छोड़कर वन की ठानी।
तप करते थे ध्यान लगाए, इक दिन कमठ वहां पर आए।
 
फौरन ही प्रभु को पहिचाना, बदला लेना दिल में ठाना।
बहुत अधिक बारिश बरसाई, बादल गरजे बिजली गिराई।
 
बहुत अधिक पत्थर बरसाए, स्वामी तन को नहीं हिलाए।
पद्मावती धरणेन्द्र भी आए, प्रभु की सेवा में चित लाए।
 
धरणेन्द्र ने फन फैलाया, प्रभु के सिर पर छत्र बनाया।
पद्मावती ने फन फैलाया, उस पर स्वामी को बैठाया।
 
कर्मनाश प्रभु ज्ञान उपाया, समोशरण देवेन्द्र रचाया।
यही जगह अहिच्छत्र कहाए, पात्र केशरी जहां पर आए।
 
शिष्य पांच सौ संग विद्वाना, जिनको जाने सकल जहाना।
पार्श्वनाथ का दर्शन पाया, सबने जैन धरम अपनाया।
 
अहिच्छत्र श्री सुन्दर नगरी, जहां सुखी थी परजा सगरी।
राजा श्री वसुपाल कहाए, वो इक जिन मंदिर बनवाए।
 
प्रतिमा पर पालिश करवाया, फौरन इक मिस्त्री बुलवाया।
वह मिस्तरी मांस था खाता, इससे पालिश था गिर जाता।
 
मुनि ने उसे उपाय बताया, पारस दर्शन व्रत दिलवाया।
मिस्त्री ने व्रत पालन कीना, फौरन ही रंग चढ़ा नवीना।
 
गदर सतावन का किस्सा है, इक माली का यों लिक्खा है।
वह माली प्रतिमा को लेकर, झट छुप गया कुए के अंदर।
 
उस पानी का अतिशय भारी, दूर होय सारी बीमारी।
जो अहिच्छत्र हृदय से ध्वावे, सो नर उत्तम पदवी वावे।
 
पुत्र संपदा की बढ़ती हो, पापों की इकदम घटती हो।
है तहसील आंवला भारी, स्टेशन पर मिले सवारी।
 
रामनगर इक ग्राम बराबर, जिसको जाने सब नारी-नर।
चालीसे को ‘चन्द्र’ बनाए, हाथ जोड़कर शीश नवाए।
 
 
सोरठा
 
नित चालीसहिं बार, पाठ करे चालीस दिन।
 
खेय सुगंध अपार, अहिच्छत्र में आय के।
 
होय कुबेर समान, जन्म दरिद्री होय जो।
 
जिसके नहिं संतान, नाम वंश जग में चले।
 
चाहे सम्मेद शिखरजी की वंदना हो या घर पर नित्य पूजा, इस चालीसा का पाठ मन को असीम शांति, आत्मबल और सुख-समृद्धि प्रदान करता है। यह केवल शब्दों का समूह नहीं, बल्कि परमात्मा से जुड़ने का एक सरल और सशक्त माध्यम है।
 
 

Shree Parasnath Chalisa Lyrics को हमने ध्यान पूर्वक लिखा है, फिर भी इसमे किसी प्रकार की त्रुटि दिखे तो आप हमे Comment करके या फिर Swarn1508@gmail.com पर Email कर सकते है।

 

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top