माँ विंध्यवासिनी की आरती हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखती है। माता विंध्यवासिनी देवी दुर्गा के अवतार मानी जाती हैं और वे उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित विंध्याचल पर्वत पर विराजित हैं। माता विंध्यवासिनी की आरती में उनकी महिमा, शक्ति और भक्तों पर उनकी कृपा का वर्णन किया जाता है। इस आरती को गाने से भक्तों को माता की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
श्री विंध्येश्वरी माता की आरती
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।
कोई तेरा पार ना पाया माँ॥
पान सुपारी ध्वजा नारियल।
ले तेरी भेंट चढ़ायो माँ॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।
कोई तेरा पार ना पाया माँ॥
सुवा चोली तेरी अंग विराजे।
केसर तिलक लगाया॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।
कोई तेरा पार ना पाया माँ॥
नंगे पग मां अकबर आया।
सोने का छत्र चडाया॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।
कोई तेरा पार ना पाया माँ॥
ऊंचे पर्वत बनयो देवालाया।
निचे शहर बसाया॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।
कोई तेरा पार ना पाया माँ॥
सत्युग, द्वापर, त्रेता मध्ये।
कालियुग राज सवाया॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।
कोई तेरा पार ना पाया माँ॥
धूप दीप नैवैध्य आर्ती।
मोहन भोग लगाया॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।
कोई तेरा पार ना पाया माँ॥
ध्यानू भगत मैया तेरे गुन गाया।
मनवंचित फल पाया॥
सुन मेरी देवी पर्वतवासनी।
कोई तेरा पार ना पाया माँ॥
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विन्ध्येश्वरी माता की आरती के लाभ
विन्ध्येश्वरी माता की आरती करने से भय और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। माता की कृपा से जीवन में शक्ति, साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है। उनकी आरती से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और परिवार में सुख-शांति का वास होता है। यह आरती भक्तों को मानसिक शांति और आध्यात्मिक बल प्रदान करती है।
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